Wednesday, 3 April 2019

हम तीन बार ही क्यों शांति शब्द का उच्चार करते है ?


             यदि आप हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान या किसी वैदिक प्रार्थना या किसी योग शिविर में उपस्थित रहें हों तो आपने अनुभव किया होगा कि अंत में ये सभी अनुष्ठान या पूजा इत्यादि शांति मन्त्र के उच्चार के बाद ही संपन्न होते है! उदहारण के लिए भोजन के पूर्व कहा जाने वाला भोजन मन्त्र

                                        ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम्।
                                            ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥
                                                     ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

अर्थात्

जिस यज्ञ में अर्पण भी ब्रह्म है हवि भी ब्रह्म है और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देने रूप क्रिया भी ब्रह्म है (ऐसे यज्ञ को करने वाले) जिस मनुष्य की ब्रह्म में ही कर्म समाधि हो गयी है उसके द्वारा प्राप्त करने योग्य फल भी ब्रह्म ही है ।
(स्त्रोत श्रीमद भागवत गीता अध्याय ४ श्लोक २४)


              जैसे की अंतिम पंक्ति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार है । कई बार यह प्रश्न उठता है कि शांति शब्द का उच्चार तीन बार ही क्यों किया जाता है ? क्या इसका कोई कारण या महत्व है ? हम शांति शब्द का उच्चार केवल तीन बार ही क्यों करते हैं ? इसकी संक्षिप्त व्याख्या कुछ इस प्रकार है :

हमारे पौराणिक एवं वैदिक ग्रंथों के अनुसार जीवन का मुख्य उद्देश्य जीवन में त्रिविध कष्टों या तीन प्रकार की वेदनाओं से मुक्ति पाना है ।
सांख्य सूत्र के प्रथम सूत्र के अनुसार:
"अथ त्रिविधदुःखात्यन्त निवृत्तिः अत्यन्त पुरुषार्थः" (1.1)

“स्थायी एवं परिपूर्ण रूप से त्रिविध वेदनाओं से मुक्ति ही जीवन मात्र का सबसे बड़ा लक्ष्य है” ।

व्यक्ति के जीवन में सभी समस्याओं और वेदनाओं का उद्गम क्रमशः अधिदैविक, अधिभौतिक एवं आध्यात्मिक कारणों से ही है।


अधिदैविक: दैवीय शक्ति मनुष्य के नियंत्रण से परे जैसे भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी विस्फोट।

अधिभौतिक: हमारे आस-पास के भौतिक कारण जैसे अपराध, दुर्घटनाएं, प्रदूषण आदि।

आध्यात्मिक: ‘आत्मिक’ का अर्थ है आत्मा का। आध्यात्मिक वेदना या व्यथा परम हानिकारक एवं दीर्घकालिक होती है क्यूंकि इसका सम्बन्ध हमसे और हमारे अपने आप से है । हम इसे स्वयं अपने में प्रवृत्त किये रहते है! यह मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक हो सकती है। शारीरिक वेदना जैसे अपने स्वास्थय का ध्यान न रखना, व्यायाम न करने से एवं असंयमित भोजन से उत्पन्न होती है । मानसिक वेदना जो की नकारात्मक भाव जैसे गुस्सा, घृणा, जलन, लालच के द्वारा उत्पन्न होती है ।

               इन सभी के शांति के लिए सभी वैदिक अनुष्ठानों का समापन शांति शब्द का उच्चार तीन बार करने के साथ ही किया जाता है । पहली बार तेज ध्वनि के साथ, दैवीय शक्तियों को संबोधित करने के लिए । दूसरी बार हमारे एकदम आस-पास की भौतिक वस्तुओं को संबोधित करते हुए, धीमे स्वर में और अंत में बहुत धीरे हमारे अंतर्मन और हमारी आत्मा के लिए ।

                                                ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

Thursday, 31 January 2019

संविधान, न्यायपालिका और कांग्रेस शासन की स्मृतियां



      हाल ही में टीवी पर एक साक्षात्कार में श्री हरीश साल्वे ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ नेताओं के लिए कहा कि “आपके पास पूर्ण बहुमत हो सकता है, लेकिन कृप्या मीडिया, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दाखिल कर अदालती मुकदमों का सहारा लेने वाले लोगों की हिला देने वाली ताकत को कम करके नहीं आंकें।”

      पिछले तीन महीनों में ‘संविधान की रक्षा’ और ‘उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की गरिमा’ के नाम पर सार्वजनिक संवाद और मीडिया में विपक्ष का शोर ही छाया रहा है। राजनीतिक संबंध रखने वाले या विभिन्न विपक्षी पार्टियों के वफादार वकील ‘संविधान तथा न्यायाधीशों की गरिमा की रक्षा करने के लिए’ कांग्रेस की अगुआई में एकजुट हो गए हैं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने तो राजनीति से प्रेरित कुछ पीआईएल का हवाला देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को ‘बेंच फिक्सर’ तक कह डाला है। न्यायपालिका को धमकाने के लिए वे झूठ फैला रहे हैं और ओछे आरोप लगाकर तथा महाभियोग तक की बात कहकर न्यायाधीशों को डरा रहे हैं। इसलिए अतीत पर नजर डालकर यह देखना जरूरी है कि इन ताकतों ने कैसे न्यायिक संस्थाओं तथा न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा और गरिमा को नुकसान पहुंचाया है।

      जब हम इस मामले को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो हमें पता चलता है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट न्यायपालिका की गरिमा तथा स्वतंत्रता को ठेस पहुंचाते आए हैं। यह सब स्वतंत्रता के शुरुआती दिनों में ही आरंभ हो गया था। न्यायमूर्ति बी. पी. सिन्हा बताते हैं कि भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति हरिलाल जे, कनिया का 6 नवंबर, 1951 को जब दिल का दौरा पड़ने से अचानक असामयिक निधन हो गया तो प्रधानमंत्री न्यायमूर्ति एम, पतंजलि शास्त्री, मेहर चंद महाजन तथा बी. के. मुखर्जी की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर न्यायमूर्ति एस. आर. दास को मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहते थे। लेकिन जैसा कि न्यायमूर्ति सिन्हा कहते हैं, एक ‘अलिखित कानून’ ने ऐसा होने से रोक दिया। अंत में न्यायमूर्ति पतंजलि शास्त्री ने दो महीने तक कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम करने के बाद पद की शपथ ली। यह इकलौता मौका था, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मिले।

     न्यायमूर्ति पतंजलि शास्त्री के सेवानिवृत्त होने के बाद पंडित नेहरू मेहर चंद महाजन को मुख्य न्यायाधीश के पद पर पहुंचने से रोकना चाहते थे क्योंकि कश्मीर मसले पर दोनों की बिल्कुल नहीं बनती थी। महाजन सबसे कठिन समय में यानी 1946 और 1947 में कश्मीर के प्रधानमंत्री रह चुके थे। दोनों के बीच कड़वा पत्र व्यवहार हुआ था और दोनों ने ही सरदार पटेल से शिकायत की थी कि दूसरा पक्ष उनकी सुनता नहीं है। महाजन ने कश्मीर मामले में बरबादी की चेतावनी दे दी थी। सरदार पटेल दोनों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे। पंडित नेहरू तो महाजन के सर्वोच्च न्यायालय में न्याधीश बनने से भी दुखी हुए थे। 3 जनवरी, 1954 को मुख्य न्यायाधीश पतंजलि शास्त्री के सेवानिवृत्त होने के बाद नेहरू सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय से एम. सी. चांगला को सीधे भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाने की इच्छा जताई। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने इस कदम का विरोध तो किया ही, कांग्रेस सरकार से यह तक कह डाला कि यदि, “आप महाजन के बजाय किसी अन्य को मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहते हैं तो आप पूरे सर्वोच्च न्यायलय को ही नया बनाने के बारे में सोच सकते हैं।” न्यायमूर्ति एस. आर. दास को मुख्य न्यायाधीश बनने के लिए मनाया जा रहा था, लेकिन उन्होंने पंडित नेहरू से कह दिया कि शपथ लेने के बजाय वह इस्तीफा दे देंगे। 1954 और 1973 के बीच अफसरशाही और न्यायपालिका के बीच बहुत अच्छे रिश्ते नहीं रहे। अफसरशाही अक्सर अपनी पसंद के लोगों को नियुक्त करा लेती थी। लेकिन अगर मुख्य न्यायाधीश ने किसी व्यक्ति को पसंद नहीं किया और अड़ गए तो पीछे हट जाती थी। लेकिन यह सब जनता की नजरों से बहुत दूर रहा।

       न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायाधीशों की गरिमा पर असली प्रहार श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार आने के साथ शुरू हुआ। केशवानंद भारती मामले में मुकदमा हारने के बाद श्रीमती गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय को घुटने टेकने पर मजबूर करने का ही फैसला नहीं किया बल्कि असहमति जताने वाले न्यायाधीशों को सबक सिखाने की भी ठान ली। केशवानंद भारती मामले में फैसला 24 अप्रैल, 1973 को सुनाया गया और मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी को अगले दिन सेवानिवृत्त होना था। सीकरी के बाद तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एम. शेलाट, के. एस. हेगड़े और ए. एन. ग्रोवर थे। फैसला आने के फौरन बाद 24 अप्रैल को ही मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक हुई और उसने तीन अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों को लांघते हुए ए. एन. रे की नियुक्ति का निर्णय लिया। आकाशवाणी ने 24 अप्रैल को शाम 5 बजे के अपने बुलेटिन में ए. एन. रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की घोषणा की और तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति शेलाट, हेगड़े तथा ग्रोवर ने इस्तीफे दे दिए। इस प्रकार न्यायाधीशों को तत्कालीन सरकार की बात नहीं मानने की सजा दी गई।

      रजनी पटेल, मोहन कुमारमंगलम तथा कई अन्य कांग्रेसी नेता “सर्वोच्च न्यायालय को सरकार के प्रति समर्पित न्यायाधीशों से भरने” की बात करते रहे थे। कांग्रेस में श्री मोहन कुमारमंगलम, एस. एस. रे, एच. आर. गोखले और कई अन्य खुलेआम कहते आए थे कि “...पार्टी और इंदिरा के सलाहकारों के बीच लंबे समय से, कम से कम सर्दियों से दमन की बात होती आई है।” न्यायपालिका को सरकार के रास्ते में रुकावट माना जाता था। “विधि मंत्री गोखले ने कुछ वर्षों बाद बताया कि प्रधानमंत्री सिद्धार्थ (रे) और कुमारमंगलम अड़े हुए थे और प्रधानमंत्री को चिंता थी कि हेगड़े मुख्य न्याधीश न बन जाएं... (क्योंकि) हेगड़े का फैसला प्रधानमंत्री के हित के खिलाफ था।” उनके निजी सचिव एन. के. शेषन के अनुसार, “इंदिरा गांधी हेगड़े से छुटकारा पाने पर अड़ी हुई थीं। इसके पीछे असली ताकत वही थीं।”इस तरह हेगड़े को विशुद्ध रूप से वैचारिक आधार पर और निजी कारणों से नजरअंदाज कर दिया गया। गोखले, एस. एस. रे और कुमारमंगलम ने न्यायमूर्ति ए. एन. रे के नाम की सिफारिश की क्योंकि अधिकतर खबरों के मुताबिक उन्हें ‘दब्बू’ और उदार माना जाता था। शीला दीक्षित ने बताया, “मोहन और गोखले ने इंदिरा को बताया कि ए. एन. रे सबसे अच्छे हैं।”

       मामला वहीं खत्म नहीं हुआ। जब न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना की मुख्य न्यायाधीश पद पर शपथ लेने की बारी आई तो यही सब दोहराया गया। कांग्रेस और श्रीमती गांधी भूल नहीं पाए कि केशवानंद भारती मामले में एच. आर. खन्ना ने ही संविधान के मूल तत्वों के सिद्धांत का पक्ष लिया था और कहा था कि उन्हें संशोधनों के जरिये बदला नहीं सकता। गोलक नाथ मामले में भी यही निर्णय लिया गया था।

      न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना ने आपातकाल के दौरान बहुचर्चित जबलपुर एडीएम मामले या बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में असहमति जताते हुए फैसला सुनाया था कि किसी भी परिस्थिति में नागरिकों के मौलिक अधिकारों और जीवन जीने के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है और कार्यपालिका को जीवन तथा स्वतंत्रता लेने का असीमित अधिकार नहीं दिया जा सकता है। साथ ही न्यायपालिका को उसकी ‘प्रहरी’ की भूमिका निभाने से रोका नहीं जा सकता और इस तरह संविधान के एक मूल तत्व का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने फैसले में लिखा कि “एहतियातन हिरासत में लेने का, सुनवाई के बगैर हिरासत में रखने का कानून उन सभी लोगों के लिए अभिशाप है, जो निजी स्वतंत्रता से प्यार करते हैं। ऐसा कानून उस बुनियादी मानवीय स्वतंत्रता का घोर अतिक्रमण करता है, जिसका आनंद हम सभी उठाते हैं और जो जीवन के उच्चतर मूल्यों में प्रमुख है... मौलिक अधिकार नहीं होने पर भी सरकार को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह कानूनी अधिकार के बगैर किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित कर दे। प्रत्येक नागरिक समाज में यही आवश्यक आधार तत्व तथा विधि शासन की बुनियादी परिकल्पना है।”12 फैसला सुनने के बाद जयप्रकाश नारायण ने अभागे भारतीयों की बात कीः “फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की फड़फड़ाती लौ को सामने रख दिया है। श्रीमती गांधी की तानाशाही व्यक्तिगत और संस्थागत दोनों ही रूपों में अब लगभग पूरी हो चुकी है।” नियंत्रण के कारण अखबारों को न्यायमूर्ति खन्ना के असहमति भरे फैसले को छापने की इजाजत नहीं मिली। अन्य चार न्यायाधीशों ए. एन. रे, एम. एच. बेग, वाई. वी. चंद्रचूड़ और एच. एन. भगवती ने श्रीमती गांधी का मनचाहा फैसला दिया। इस प्रकार फैसला चार बनाम एक से आया। आपातकाल का विरोध करने वाले सुनवाई के बगैर और जीवन के अधिकार के बगैर जेलों में ही पड़े रहे।

          न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना सात न्यायाधीशों में अंतिम न्यायाधीश थे, जिन्होंने कहा कि संसद को मौलिक अधिकारों के कुछ हिस्सों को घटाना अथवा संशोधन करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए संविधान के किसी प्रावधान को संशोधित करने का अधिकार है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे अथवा प्रारूप को नष्ट नहीं कर सकती और संविधान के तीसरे भाग अथवा मौलिक अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकती। जिन सात न्यायाधीशों ने केशवानंद भारती मामले में बहुमत से यह फैसला दिया था कि संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता, उनमें से मुख्य न्यायाधीश एस. एम. सीकरी ने फैसला सुनाने के अगले दिन ही यानी 25 अप्रैल को इस्तीफा दे दिया और सेवानिवृत्त हो गए और न्यायमूर्ति जे. एम. शेलाट, के. एस. हेगड़े तथा ए. एन. ग्रोवर ने मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए नजरअंदाज किए जाने पर इस्तीफे दे दिए। न्यायमूर्ति ए. के. मुखर्जी की सेवानिवृत्ति से पूर्व ही मृत्यु हो गई और न्यायमूर्ति पी. जगमोहन रेड्डी नियत समय पर सेवानिवृत्त हुए। जिन सात न्यायाधीशों ने कहा था कि संशोधन की प्रक्रिया से संविधान की पहचान खत्म नहीं होने दी जा सकती, उनमें से अंतिम सेवारत न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना थे। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधीश होने के बाद भी जब कांग्रेस सरकार ने उन्हें मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया तो 28 जनवरी, 1977 को न्यायमूर्ति खन्ना ने भी इस्तीफा दे दिया। केशवानंद भारती मामले में अल्पमत का फैसला देने वाले छह न्यायाधीशों में रे पहले ही मुख्य न्यायाधीश बन गए थे और बाकी तीन सेवारत न्यायाधीश भी अपनी बारी आने पर मुख्य न्यायाधीश बने।

           लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि चार बनाम एक के मत से आए इस ऐतिहासिक फैसले के बाद क्या हुआ। फैसला सुनाए जाने के बाद नेहरू के अटॉर्नी जनरल और चुनाव मामले में इंदिरा गांधी के वकील अशोक सेन ने खन्ना से मुलाकात की और भारतीय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बचाने के लिए उन्हें बधाई दी। तत्कालीन अटॉर्नी जनरल नीरेन डे चाय की एक दावत में खन्ना को एक तरफ ले गए और कहा, “आपके महान फैसले के लिए मैं आपको बधाई देता हूं।” चंद्रचूड़ और बेग ने बाद में अफसोस जताया कि उन्होंने डरकर फैसला क्यों दिया था। 22 अप्रैल, 1978 को FICCI में बोलते हुए चंद्रचूड़ ने कहाः “मुझे अफसोस है कि मेरे भीतर अपनी बात डटकर कहने और लोगों को यह बताने का साहस नहीं था कि कानून यही है।”न्यायमूर्ति बेग ने आपातकाल के बाद एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहाः “बंदी प्रत्यक्षीकरण फैसला शायद बहाने वाला था क्योंकि इससे लगा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार जताने वाली कोई भी याचिका अनुच्छेद 32 अथवा 226 के अंतर्गत नहीं ठहरेगी क्योंकि नागरिकों के अदालत में आने के अधिकार पर रोक लगी हुई थी।”

        न्यायपालिका को संविधान संशोधनों की समीक्षा से दूर रखने पर ही बात खत्म नहीं हुई। स्वतंत्र न्यायाधीशों को प्रताड़ित किया गया, दंड दिया गया और ब्लैकमेल भी किया गया, जबकि बात मानने वाले न्यायाधीशों को प्रोन्नतियां दी गईं और पद्म पुरस्कार, आयोगों में नियुक्ति तथा राज्यसभा के लिए नामांकन जैसे पुरस्कार दिए गए। श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने न्यायाधीशों के एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में और वह भी देश के एक कोने से दूसरे कोने में स्थानांतरण करने का सहारा लिया। इससे न्यायाधीश बहुत अस्तव्यस्त और असुरक्षित महसूस करने लगे। आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय एकीकरण के नाम पर उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीशों का एक साथ तबादला कर दिया गया। आपातकाल के दौरान स्थानांतरण के मामलों की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति वाई. वी. चंद्रचूड़ ने राष्ट्रीय एकीकरण के इस अनूठे तरीके पर कहाः “उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे में भेजने के अलावा भी राष्ट्रीय एकीकरण को अधिक प्रभावी तरीके से प्राप्त करने के कई अन्य तरीके हैं... एक उच्च न्यायालय से दूसरे में जाने में जो असुविधा और कठिनाई होती है तथा संभवतः अपमान भी होता है, उसे देखते हुए न्यायाधीशों को अछूता छोड़ देना और इस उद्देश्य के लिए दूसरे कदम उठाना बेहतर होता। यदि स्थिति के परिपक्वता भरे और निष्पक्ष मूल्यांकन के बाद भी ऐसा लगता कि उच्च न्यायालयों में दूसरे राज्यों के व्यक्तियों को रखा जाना चाहिए तो शुरुआत में बाहरी न्यायाधीशों की नियुक्तियों के जरिये यही मकसद अधिक आसानी और प्रभावी तरीके से पूरा किया जा सकता था।”

          आपातकाल के दौरान विभिन्न उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में अतिरिक्त न्यायाधीशों को नियमित विस्तार अथवा स्थायी नियुक्ति नहीं दी गईं। इनमें से अधिकतर वे न्यायाधीश थे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान आम नागरिकों की गैर कानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ फैसले दिए थे। इनमें दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश श्री आर. एन. अग्रवाल शामिल थे, जिन्होंने कुलदीप नैयर को एहतियातन हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया था। कांग्रेस जब 1980 में सत्ता में लौटी तो उच्च न्यायालय के पांच मुख्य न्यायाधीशों को स्थायी हुए बगैर ही सेवानिवृत्त होना पड़ा। अतिरिक् न्यायाधीशों को विस्तार अथवा नियुक्तियां एकदम अंतिम क्षणों पर ही दी गईं और उन्हें प्रतिष्ठा कम करने वाले कई बयान देने पर मजबूर किया गया। कांग्रेस पार्टी के नेताओं और सरकार ने न्यायाधीशों को बदनाम करने तथा उनका मनोबल गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस सरकार के एक कैबिनेट मंत्री ने समूची न्यायपालिका को केवल इसीलिए विपक्षी पार्टियों के खेमे में बता दिया था क्योंकि न्यायाधीश वह नहीं कर रहे थे, जो कांग्रेस सरकार चाहती थी। समर्पित न्यायपालिका की बात कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस सरकार ही नहीं कर रही थीं बल्कि एक विधि मंत्री ने तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के जरिये प्रत्येक न्यायाधीश को चिट्ठी तक लिख डालीं, जिनमें कहा गया था किः “भारत सरकार उन मूल्यवान न्यायाधीशों का बहुत सम्मान करती है, जो कभी सरकार के खिलाफ फैसला नहीं देते हैं और उच्चतम न्यायालय में उनकी प्रोन्नति पर सकारात्मक ढंग से विचार किया जाएगा।” वास्तव में यह धमकाने वाली चिट्ठी थी।

        कांग्रेस और श्रीमती गांधी को सर्वोच्च न्यायपालिका का दमन करके ही संतोष नहीं मिला। उन्होंने संविधान में कई संशोधन (24वें से 42वें संशोधन तक) भी किए और संविधान को अपना दास बना लिया। ऐसी विरासत को दोहराने नहीं दिया जाना चाहिए।

(The article is sourced from the https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/september/18/savidhan-nyaypalika-aur-congress-shasan-ki-smritiya to whom it belongs to, all credits to the author and website)

Sunday, 19 April 2015

Is BJP's Sadsyata Abhiyan is "Napoleon's russia campaign"?

What is the difference between 2014 Lok Sabha elections and other upcoming elections? In my opinion BJP's victory was the victory of thousands of skilled,disciplined and determined peole whose aim was to root out the congress dynasty & its misrule. Modi/Amit Shah's strategy worked very well because the people who were executing it were skilled and represented all the segments of the society. BJP was defeated badly in Delhi elections. Now what will be the out come of Bihar and other up coming elections? BJP is claiming that it crossed 10 crore marks for its very ambitious "Sadasyata Abhiyan". In my opinion Amit Shah is going in Napoleon's way as Napoleon did in his Russian campaign. Napoleon is considered as one of the best Generals in the world. His strategies, vision and planing used to be perfect but still he lost his Russian campaign. The reason was a huge unskilled and undisciplined army. He lost because he forgot his own war principle and best practices that for victory skilled and disciplined army is required not huge army without skills and discipline. So is Amit Shah doing the same thing? Instead of concentrating on skilled, honest & disciplined cadre he started believing on outnumbering the party members ? Will his strategy work for Bihar and others upcoming elections ? or his Bihar/UP campaign will be proven as Napoleon's Russian Campaign.

Wednesday, 11 February 2015

The Science Behind Why Do We Do What We Do In Hindu Culture


1. Why do we place both palms together to greet?

In Indian culture, people greet each other by joining their palms – termed as “Namaskaar or Namastay.” The general reason behind this tradition is that greeting by joining both the palms means respect. However, scientifically speaking, joining both hands ensures joining the tips of all the fingers together; which are denoted to the pressure points of eyes, ears, and mind. Pressing them together is said to activate the pressure points which helps us remember that person for a long time. And, prevents any germs from being exchanged since we don’t make any physical contact! For the same reason, food and drinks touched by a person's tongue are not partaken by others to prevent infection.


2. Why do Indian women wear a toe ring?

Wearing toe rings is not just the significance of married women but there is science behind it. Normally toe rings are worn on the second toe. A particular nerve from the second toe connects the uterus and passes to heart. Wearing toe ring on this finger strengthens the uterus. It will keep it healthy by regulating the blood flow to it and menstrual cycle will be regularized. As Silver is a good conductor, it also absorbs polar energies from the earth and passes it to the body.


3. Why do we throw coins in the well, pond or river?

The general reasoning given for this act is that it brings Good Luck. However, scientifically speaking, in the ancient times, most of the currency used was made of copper unlike the stainless steel / Nickle coins of today. Copper is a vital metal very useful to the human body. Throwing coins in the water (well, pond and river) was one way our fore-fathers ensured we intake sufficient copper as part of the water as wells, ponds and rivers were the sources of drinking water. Making it a custom ensured that all of us follow the practice.


4. Why do we apply tilak / kumkum on the forehead?

On the forehead, between the two eyebrows, is a spot that is considered as a major nerve point in the human body since ancient times. The Tilak is believed to prevent the loss of “energy”, the red ‘kumkum’ between the eyebrows is said to retain energy in the human body and control the various levels of concentration. While applying kumkum the points on the mid-brow region and Aadnyaa-chakra are automatically pressed. This also facilitates the blood supply to the face muscles.


5. Why do temples have bells?

People who are visiting the temple should and will ring the bell before entering the inner sanctum (Garbhagudi or Garbha Gruha or womb-chamber) where the main idol is placed. According to Aagama Shaastra, the bell is used to give sound for keeping evil forces away and the ring of the bell is pleasant to God. However, the scientific reason behind bells is that their ring clears our mind and helps us stay sharp and keep our full concentration on devotional purpose. These bells are made in such a way that when they produce a sound it creates a unity in the Left and Right parts of our brains. The moment we ring the bell, it produces a sharp and enduring sound which lasts for a minimum of 7 seconds in echo mode. The duration of the echo is good enough to activate all the seven healing centers in our body. This results in emptying our brain from all negative thoughts.


6. Why do we start our meals with spice & end with sweet?

Our ancestors have stressed the fact that our meals should be started off with something spicy and sweet dishes should be taken towards the end. The significance of this eating practice is that while spicy things activate the digestive juices and acids and ensure that the digestion process goes on smoothly and efficiently, sweets or carbohydrates pulls down the digestive process. Hence, sweets were always recommended to be taken as a last item.


7. Why do we apply mehendi / henna on the hands and feet?

Besides lending color to the hands, mehndi (Henna) is a very powerful medicinal herb. Weddings are stressful, and often, the stress causes headaches and fevers. As the wedding day approaches, the excitement mixed with nervous anticipation can take its toll on the bride and groom. Application of mehndi can prevent too much stress because it cools the body and keeps the nerves from becoming tense. This is the reason why mehndi is applied on the hands and feet, which house nerve endings in the body.


8. Sitting on the floor & eating

This tradition is not just about sitting on floor and eating, it is regarding sitting in the “Sukhasana” position and then eating. Sukhaasan is the position we normally use forYoga asana-s. When you sit on the floor, you usually sit in simple, relaxed cross-legged posture – in sukhasana or a half padmaasana (half lotus), which are poses that instantly bring a sense of calm and help in digestion, it is believed to automatically trigger the signals to your brain to prepare the stomach for digestion.


9. Why you should not sleep with your head towards the north?

The myth is that it invites ghost or death, but science says that it is because the human body has its own magnetic field (also known as hearts magnetic field, because of the flow of blood) and earth is a giant magnet. When we sleep with the head towards the north, our body’s magnetic field becomes completely asymmetrical to the Earth’s Magnetic field. That cause problems related to blood pressure and our heart needs to work harder in order to overcome this asymmetry of magnetic fields. Apart from this, another reason is that our body has a significant amount of iron in our blood. When we sleep in this position, iron from the whole body starts to congregate in the brain. This can cause a headache, Alzheimer’s Disease, Cognitive Decline, Parkinson disease, and brain degeneration. Therefore, the ideal position would be to sleep with the head towards the south and feet towards the north.

10. Why do we pierce our ears?

Piercing the ears has great importance in Indian ethos. Indian physicians and philosophers believe that piercing the ears helps in the development of intellect, the power of thinking and decision making faculties. Talkativeness fritters away life energy. Ear piercing helps in speech-restraint. It helps to reduce impertinent behavior and the ear-channels become free from disorders. This idea appeals to the Western world as well, and so they are getting their ears pierced to wear fancy earrings as a mark of fashion.

                                                                                                                 --Shared by Friend

Sunday, 4 January 2015

A Glimpse of Ram-Rajya

Prathamik Siksha Verga( PSV) Camp was conducted in Bangalore. It was a week-long camp starting from 27th Dec and concluded today. It was a week full of experiences which is difficult to put in words. Every moment was very special and full of knowledge and energy. But definitely I want to share an experience and I am sure only "Rashtriya Swayamsewak Sangh" can inculcate the feeling of "Ram Rajya". From day one, a shop was installed named "Ram Rajya". At first sight, it looked just like another ordinary shop but when concept and the idea were revealed.
            I was surprised and was even more surprised when came to know about the outcome. The concept behind it was that the shop will not have any shop keeper or caretaker. The shop will have different commodities displayed along with their prices. The person who wants to shop anything has to pick up the needed item and he has to put the money as per price list. Not even a single item or a penny was missing on the last day.
           I was wondering if this is possible in our society? If 150+ people can have the feeling of "Ram Rajya" in mind I am sure we all can have and implement it. I have seen this being implemented.

Monday, 29 September 2014

भारत और पाकिस्तान के लिए अमेरिकी दृष्टीकोण - पंडित दीन दयाल जी की राजनितिक डायरी से

अमेरिका की जनता और सरकार दोनों भारत - पाक एकता क लिए उत्सुक हैं ! किन्तु वे भारत का दृष्टिकोण पसंद करने की बात तो दूर, उसे समझने में भी विफल हैं! न केवल सर्वसाधारण अमरीकी, बल्कि वहां के विश्वविद्यालय के प्राध्यापक जैसे उच्च-शिक्षित व्यक्ति भी भारतीय जीवन के बारे में सर्वथा अनिभिज्ञ हैं! वहाँ यह भावना व्यापक रूप से विद्यमान है की भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम आधार पर हुआ था, और भारत में कोई मुसलमान नहीं रहता! एक विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों को प्रध्यापक के साथ वार्ता करते समय मैंने उनसे पूछा की विभिन्न देशो से आने वाले छात्रों से क्या उन्हें कोई कठिनाई अनुभव होती है ? उन्होने उत्तर दिया - अरब छात्र इस्राइल के यहूदी छात्रो के साथ रहना पसंद नहीं करते! मैंने उनसे पुनः प्रश्न किया की क्या भारत और पाकिस्तान से आने वाले छात्रो के बारे मैं भी उनका यही अनुभव है, तो उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया और कहा की यह आश्चर्य की बात है की दोनों देशो के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध होते हुए भी भारतीय और पाकिस्तानी छात्रों के बीच मैत्री की भावना के साथ कैसे रह लेते हैं !

       मैंने उनको यह कहकर पूर्ण स्थिति समझाने की कोशिश की, कि भारत का विभाजन कृत्रिम आधार पर हुआ है और पुर इतिहास में हम एक ही रहे हैं, अतः केवल एक राजनितिक रेखा जनता को विभाजित नहीं कर सकती! मैंने उनसे यह भी कहा की यदि वहां का कोई व्यक्ति उनके पास आ जाये तो शायद ही यह पहचान पाए की वह भारतीय है या पाकिस्तानी!उन्होंने कहा, " क्यों यह तो बिलकुल ही सरल है!" मैंने पूंछा कि ' आप कैसे पहचानोगे ?' उन्होंने कहा बहुत, " बहुत ही सरल है ! यदि उसका नाम मुसलमानी है तो वह निश्चय ही पाकिस्तानी है, अन्यथा भारतीय है! मुझे यह अंगूठा छाप तरीका सुनकर बड़ा ही आघात लगा! मैंने उनसे विश्वविद्यालय के भारतीय छात्रों की एक सूची देने का अनुरोध किया! उन्होंने सूची प्रदान करने का आदेश दे दिया ! उसमे लगभग एक दर्ज़न मुस्लिम छात्र थे ! मैंने पूछा कि क्या यह सूची सही है क्यूंकि इसमें कई 'पाकिस्तानी नाम ' गलती से शामिल हो गए प्रतीत होते हैं! उन्होंने उसके सही होने कि गारंटी दी ! तब मैंने उनको वे मुस्लिम नाम दिखाए और उनसे पूछा की क्या वे यह जानते हैं कि ये मुस्लिम छात्र हैं, और तब भी उनके नाम भारतीय सूची में शामिल हैं! उन्होंने ये स्वीकार किया के ये नाम मुस्लिम हैं, किन्तु वे यह नहीं बता सके किइस सूची मे कैसे हैं! वे कुछ चकित और हतप्रभ दिखाई पड़े! मैंने उन्हें ये बताया कि उस सूची में मुस्लिम नामों का शामिल होना गलत नहीं है, क्योंकि भारत में अब भी ४.५ करोड़ मुस्लमान रहते हैं!तब जाकर वे कही सूची के शुद्ध होने के बारे में आश्वस्त हो पाए! उनके लिए ये नयी जानकारी थी!

     ये वक्तव्य दिनांक ३० मार्च १९६४ का है! आज के परिपेक्षय में भी यह पूर्णतय सत्य हैं ! संख्या कुछ अलग है लेकिन सच्चा भारतीय आज भी यही सोच रखता है बस आवश्यकता हैं की इस सत्य को समझने के लिए पहले भारतीय होना आवश्यक है न की हिन्दू और मुस्लमान !

Tuesday, 29 July 2014

Vishwa Guru Bharat

Lost India: Now days we hear people saying "India has lost its history; nothing can happen to India now”. So for those people I would like to say India is as it is today but Indians have lost their bhartiyata. Today India is respected not Indians. People come to India from all across the world to learn about the great Indian history and its scriptures. But at the same time they don't respect Indians. This is a question to ponder about. Are we westernizing ourselves whereas rest of the world is turning towards Indian culture? Recently I attended a function organized by RSS Guru Pooja where following were discussed: “In Philadelphia there is Liberty Bell which cracked when it was rung for the first time in 1752”. There is a bell in Thanjaur temple, India which is 1000 years old and still ringing. So we need to think when America dint even know about metallurgy India was master in that.  We need to introspect the reason behind America being ahead of India today. Most of the Indians are unaware of Bhagwat Geeta and other scriptures. How can we build a Shrestha Bharat without understanding our great rich history? How come we can build our next generation which respects our country & culture? Aren’t we responsible for this? How many of us today want our kids to do masters in Hindi/Sanskrit? We all are like running on the treadmill of life to match the speed of life otherwise we are sacred that we will fall down. Now it’s up to us to decide if we really want to give same race of life to our next generations or we want them to take India to great heights of recognition and make India Vishwa Guru in true sense by restoring its rich history and knowledge which is on the verge of being lost.