Wednesday, 3 April 2019

हम तीन बार ही क्यों शांति शब्द का उच्चार करते है ?


             यदि आप हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान या किसी वैदिक प्रार्थना या किसी योग शिविर में उपस्थित रहें हों तो आपने अनुभव किया होगा कि अंत में ये सभी अनुष्ठान या पूजा इत्यादि शांति मन्त्र के उच्चार के बाद ही संपन्न होते है! उदहारण के लिए भोजन के पूर्व कहा जाने वाला भोजन मन्त्र

                                        ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम्।
                                            ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥
                                                     ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

अर्थात्

जिस यज्ञ में अर्पण भी ब्रह्म है हवि भी ब्रह्म है और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देने रूप क्रिया भी ब्रह्म है (ऐसे यज्ञ को करने वाले) जिस मनुष्य की ब्रह्म में ही कर्म समाधि हो गयी है उसके द्वारा प्राप्त करने योग्य फल भी ब्रह्म ही है ।
(स्त्रोत श्रीमद भागवत गीता अध्याय ४ श्लोक २४)


              जैसे की अंतिम पंक्ति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार है । कई बार यह प्रश्न उठता है कि शांति शब्द का उच्चार तीन बार ही क्यों किया जाता है ? क्या इसका कोई कारण या महत्व है ? हम शांति शब्द का उच्चार केवल तीन बार ही क्यों करते हैं ? इसकी संक्षिप्त व्याख्या कुछ इस प्रकार है :

हमारे पौराणिक एवं वैदिक ग्रंथों के अनुसार जीवन का मुख्य उद्देश्य जीवन में त्रिविध कष्टों या तीन प्रकार की वेदनाओं से मुक्ति पाना है ।
सांख्य सूत्र के प्रथम सूत्र के अनुसार:
"अथ त्रिविधदुःखात्यन्त निवृत्तिः अत्यन्त पुरुषार्थः" (1.1)

“स्थायी एवं परिपूर्ण रूप से त्रिविध वेदनाओं से मुक्ति ही जीवन मात्र का सबसे बड़ा लक्ष्य है” ।

व्यक्ति के जीवन में सभी समस्याओं और वेदनाओं का उद्गम क्रमशः अधिदैविक, अधिभौतिक एवं आध्यात्मिक कारणों से ही है।


अधिदैविक: दैवीय शक्ति मनुष्य के नियंत्रण से परे जैसे भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी विस्फोट।

अधिभौतिक: हमारे आस-पास के भौतिक कारण जैसे अपराध, दुर्घटनाएं, प्रदूषण आदि।

आध्यात्मिक: ‘आत्मिक’ का अर्थ है आत्मा का। आध्यात्मिक वेदना या व्यथा परम हानिकारक एवं दीर्घकालिक होती है क्यूंकि इसका सम्बन्ध हमसे और हमारे अपने आप से है । हम इसे स्वयं अपने में प्रवृत्त किये रहते है! यह मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक हो सकती है। शारीरिक वेदना जैसे अपने स्वास्थय का ध्यान न रखना, व्यायाम न करने से एवं असंयमित भोजन से उत्पन्न होती है । मानसिक वेदना जो की नकारात्मक भाव जैसे गुस्सा, घृणा, जलन, लालच के द्वारा उत्पन्न होती है ।

               इन सभी के शांति के लिए सभी वैदिक अनुष्ठानों का समापन शांति शब्द का उच्चार तीन बार करने के साथ ही किया जाता है । पहली बार तेज ध्वनि के साथ, दैवीय शक्तियों को संबोधित करने के लिए । दूसरी बार हमारे एकदम आस-पास की भौतिक वस्तुओं को संबोधित करते हुए, धीमे स्वर में और अंत में बहुत धीरे हमारे अंतर्मन और हमारी आत्मा के लिए ।

                                                ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

3 comments:

  1. Wonderfully written and explained. All three aspects equally important in one's life. Keep it up 👌👍

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