Monday 29 September 2014

भारत और पाकिस्तान के लिए अमेरिकी दृष्टीकोण - पंडित दीन दयाल जी की राजनितिक डायरी से

अमेरिका की जनता और सरकार दोनों भारत - पाक एकता क लिए उत्सुक हैं ! किन्तु वे भारत का दृष्टिकोण पसंद करने की बात तो दूर, उसे समझने में भी विफल हैं! न केवल सर्वसाधारण अमरीकी, बल्कि वहां के विश्वविद्यालय के प्राध्यापक जैसे उच्च-शिक्षित व्यक्ति भी भारतीय जीवन के बारे में सर्वथा अनिभिज्ञ हैं! वहाँ यह भावना व्यापक रूप से विद्यमान है की भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम आधार पर हुआ था, और भारत में कोई मुसलमान नहीं रहता! एक विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों को प्रध्यापक के साथ वार्ता करते समय मैंने उनसे पूछा की विभिन्न देशो से आने वाले छात्रों से क्या उन्हें कोई कठिनाई अनुभव होती है ? उन्होने उत्तर दिया - अरब छात्र इस्राइल के यहूदी छात्रो के साथ रहना पसंद नहीं करते! मैंने उनसे पुनः प्रश्न किया की क्या भारत और पाकिस्तान से आने वाले छात्रो के बारे मैं भी उनका यही अनुभव है, तो उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया और कहा की यह आश्चर्य की बात है की दोनों देशो के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध होते हुए भी भारतीय और पाकिस्तानी छात्रों के बीच मैत्री की भावना के साथ कैसे रह लेते हैं !

       मैंने उनको यह कहकर पूर्ण स्थिति समझाने की कोशिश की, कि भारत का विभाजन कृत्रिम आधार पर हुआ है और पुर इतिहास में हम एक ही रहे हैं, अतः केवल एक राजनितिक रेखा जनता को विभाजित नहीं कर सकती! मैंने उनसे यह भी कहा की यदि वहां का कोई व्यक्ति उनके पास आ जाये तो शायद ही यह पहचान पाए की वह भारतीय है या पाकिस्तानी!उन्होंने कहा, " क्यों यह तो बिलकुल ही सरल है!" मैंने पूंछा कि ' आप कैसे पहचानोगे ?' उन्होंने कहा बहुत, " बहुत ही सरल है ! यदि उसका नाम मुसलमानी है तो वह निश्चय ही पाकिस्तानी है, अन्यथा भारतीय है! मुझे यह अंगूठा छाप तरीका सुनकर बड़ा ही आघात लगा! मैंने उनसे विश्वविद्यालय के भारतीय छात्रों की एक सूची देने का अनुरोध किया! उन्होंने सूची प्रदान करने का आदेश दे दिया ! उसमे लगभग एक दर्ज़न मुस्लिम छात्र थे ! मैंने पूछा कि क्या यह सूची सही है क्यूंकि इसमें कई 'पाकिस्तानी नाम ' गलती से शामिल हो गए प्रतीत होते हैं! उन्होंने उसके सही होने कि गारंटी दी ! तब मैंने उनको वे मुस्लिम नाम दिखाए और उनसे पूछा की क्या वे यह जानते हैं कि ये मुस्लिम छात्र हैं, और तब भी उनके नाम भारतीय सूची में शामिल हैं! उन्होंने ये स्वीकार किया के ये नाम मुस्लिम हैं, किन्तु वे यह नहीं बता सके किइस सूची मे कैसे हैं! वे कुछ चकित और हतप्रभ दिखाई पड़े! मैंने उन्हें ये बताया कि उस सूची में मुस्लिम नामों का शामिल होना गलत नहीं है, क्योंकि भारत में अब भी ४.५ करोड़ मुस्लमान रहते हैं!तब जाकर वे कही सूची के शुद्ध होने के बारे में आश्वस्त हो पाए! उनके लिए ये नयी जानकारी थी!

     ये वक्तव्य दिनांक ३० मार्च १९६४ का है! आज के परिपेक्षय में भी यह पूर्णतय सत्य हैं ! संख्या कुछ अलग है लेकिन सच्चा भारतीय आज भी यही सोच रखता है बस आवश्यकता हैं की इस सत्य को समझने के लिए पहले भारतीय होना आवश्यक है न की हिन्दू और मुस्लमान !

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